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शून्य अगर किसी संख्या के आगे लगे तो उसका कोई मान नहीं लेकिन यही अगर संख्या के पीछे लग जाए तो मान परिवर्तित हो जाता है।
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तो आइये जानते है शून्य के आविष्कार से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य -
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शून्य के आविष्कारक आर्यभट्ट को माना जाता है।
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ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मगुप्त के समय से जीरो का प्रचार यूरोप, चीन अरब देशों तक हुआ।
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लेकिन 1881 में मिली बक्षाली पाण्डुलिपि में शून्य का उल्लेख है और शोध से पता चला है कि शून्य आर्यभट्ट के काल से भी पुराना है।
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शून्य का ज्ञात उदाहरण ग्वालियर दुर्ग में मिलता है, इस दुर्ग की दीवार में शून्य उकेरा गया है जो 1500 साल पुराना है।
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12वीं शताब्दी में भास्कराचार्य ने बताया की शून्य का भाग देने पर उसका माँ अनंत आता है।
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जानें π का आविष्कार कब हुआ और किसने किया