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मेवाड़ का पुराना नाम शिवी जनपद, मेद्पात था क्योंकि इस क्षेत्र में पहले मेर जाति रहा करती थी इसलिए इसका नाम मेवाड़ पड़ा
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मेवाड़ की राजधानी अलग-अलग रही लेकिन जब से मेवाड़ की राजधानी उदयपुर बनी तभी से उदयपुर को ही मेवाड़ कहा जाने लगा
उदयपुर (मेवाड़)
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मेवाड़ में सबसे पहले गुहिल राजवंश का शासन रहा, मेवाड़ के इतिहास की शुरुआत गुहिलों से ही होती है
मेवाड़ के इतिहास की शुरुआत
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काल भोज के समय मेवाड़ की राजधानी नागदा रही उसके बाद आहड़ मेवाड़ की दूसरी राजधानी बनाई गई
मेवाड़ की पहली राजधानी
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काल भोज जो कि गुहिल शासक महेंद्र द्वितीय के पुत्र थे उन्होंने ही चित्तौडगढ़ दुर्ग को मान मौरी से जीता था
गुहिल शासक काल भोज
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सम्पूर्ण राजपूताने में मेवाड़ का इतिहास काफी गौरवपूर्ण रहा है, यहाँ गुहिल शासकों के बाद सिसोदिया राजवंश की शुरुआत हुई
सिसोदिया वंश
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मेवाड़ के इतिहास में महाराणा हम्मीर, महाराणा लाखा, महाराणा कुंभा जैसे महान कवि, मुगलों से मेवाड़ को बचाने वाले महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे प्रतापी शासक हुए है
मेवाड़ के शासक
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अनेक प्रकार के कष्ट सहते हुए मेवाड़ या उदयपुर राज्य ने अपनी स्वतंत्रता और गौरव को बनाए रखा शायद यही कारण है कि उदयपुर के महाराणा ‘हिंदुआ सूरज’ कहलाते है
हिंदुआ सूरज
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मेवाड़ राजवंश के आखिरी शासक महाराणा भगवात सिंह जी थे जिनके दो पुत्र है महेंद्र सिंह मेवाड़ और अरविन्द सिंह मेवाड़
मेवाड़ के आखिरी शासक
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