Rana Sanga History महाराणा सांगा का मेवाड़ ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान है। मेवाड़ के परम यशस्वी शासक महाराणा संग्रामसिंह महाराणा कुम्भा के पौत्र व महाराणा रायमल के तीसरे पुत्र थे। आइये आगे जानते है महाराणा सांगा द्वारा लड़े गए युद्धों की कहानी, कैसे उन्हें ज़हर दिया गया, उनकी मृत्यु के बाद किसने मेवाड़ की गद्दी को संभाला?

राणा सांगा के जीवन का संक्षिप्त परिचय (Rana Sanga History)
- महाराणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल, 1482 को और उनका राज्याभिषेक 24 मई, 1509 को हुआ था।
- अजमेर कर्मचंद पंवार राणा सांगा के आश्रयदाता थे, इन्होंने ही राज्याभिषेक तक सांगा को अपने बड़े भाइयों से बचाकर अज्ञातवास में रखा था।
- महाराणा सांगा के पिता का नाम राणा रायमल और माता का नाम रतन कुंवरी था।
- महाराणा संग्रामसिंह के शासन के समय दिल्ली में लोदी वंश के सिकंदर लोदी का शासन था।
- गुजरात में महमूद बेगड़ा और मालवा में नासिर शाह खिलजी का शासन था।
- 30 जनवरी, 1528 को कालपी नामक स्थान पर महाराणा सांगा का निधन हो गया।
सांगा ने 20 वर्षों तक मेवाड़ पर शासन किया, इसमें उन्होंने 100 से अधिक युद्ध लड़े। राणा सांगा ने मेवाड़ की रक्षा में अपना एक हाथ और एक आँख भी गवा दिए थे। मेवाड़ के पड़ौसी राज्यों से पुनः संबंध स्थापित करने और सभी राजपूत राज्यों को एकजूट करने के लिए राणा सांगा ने कई वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित किए।
आगे जानते है सांगा के शासनकाल में लड़े गए युद्धों की जानकारी –
राणा सांगा इतिहास में क्यों प्रसिद्ध हुए? (Rana Sanga History)
महाराणा सांगा वीर, उदार, बुद्धिमान और न्यायप्रिय शासक थे। माना जाता है कि राणा सांगा अंतिम हिन्दू शासक थे जिनके सेनापतित्व में सभी राजपूत जातियां विदेशियों को भारत से निकालने के लिए सम्मिलित हुई। राणा सांगा ने अपने जीवनकाल में कई सैन्य विजय प्राप्त की चाहे वो मालवा का युद्ध हो या खातौली का या फिर हो धौलपुर और बयाना का।
इन युद्धों की विस्तार से जानकारी नीचे दी गई है –
राणा सांगा के युद्ध का क्रम (Rana Sanga Battle List)
महाराणा संग्रामसिंह द्वारा लड़े गए युधों का क्रम निम्न है –
खातौली का युद्ध | 1517 | मेवाड़ के राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराया |
गागरोन का युद्ध | 1519 | राणा सांगा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को हराकर बंदी बनाया |
बयाना का युद्ध | फरवरी, 1527 | राणा सांगा ने बाबर की सेना को हराकर बयाना का किला जीता |
खानवा का युद्ध | मार्च, 1527 | बाबर ने राणा सांगा को हराया |
राणा सांगा और मालवा (गागरोन का युद्ध)
- 1511 ई. में नासिरुद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद महमूद खिलजी द्वितीय मालवा की गद्दी पर बैठा। लेकिन नासिरुद्दीन के छोटे भाई ने महमूद को हटाकर सिंहासन अधिकृत कर लिया।
- फरवरी 1518 ई. में सुल्तान महमूद खिलजी की सहायता के लिए गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने मालवा पर आक्रमण किया और मांडू के दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
- मालवा पर सुल्तान के अधिकार के समाचार सुनकर चंदेरी के शासक मेदिनिराय ने राणा सांगा से सहायता के लिए अनुरोध किया।
- मेदिनिराय की सहायता के लिए राणा सांगा ने मालवा की और प्रस्थान किया और गागरोन दुर्ग पर आक्रमण कर मेदिनिराय को यह दुर्ग सौंपकर मेवाड़ चले गए।
- लेकिन महमूद खिलजी से मेदिनिराय की बढ़ती शक्ति को समाप्त करने के उद्देश्य से फिर से गागरोन पर आक्रमण किया।
- मेदिनिराय की प्रार्थना पर सांगा पुनः गागरोन पंहुचे और महमूद से युद्ध किया। इस युद्ध में सांगा को निर्णायक विजय प्राप्त हुई।
सांगा और गुजरात : ईडर राज्य में हस्तक्षेप
- मेवाड़ की गद्दी पर आसीन होने के कुछ वर्षों बाद सांगा को ईडर राज्य में अपने समर्थक को गद्दी पर बैठाने का अवसर मिला।
- ईडर राज्य जो की गुजरात में था, वहां राव भाण के पौत्र रायमल और भारमल में आपसी लड़ाई चल रही थी।
- महाराणा सांगा ने रायमल की सहायता कर उसे ईदर का शासक बनाने में में मदद की थी।
- इसी कारण से सांगा की गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह से लड़ाई हुई थी।
- सुल्तान मुजफ्फरशाह का उत्तराधिकारी सिकंदरशाह था परन्तु उसका दूसरा पुत्र बहादुरशाह गद्दी पर बैठना चाहता था।
- अतः वह अपने भाई से रुष्ट होकर मेवाड़ की शरण में चला गया।
- राणा सांगा ने उसकी सहायता से गुजरात को कई बार लुटवाया और गुजरात की शक्ति को निर्बल किया।
खातौली का युद्ध
राणा सांगा के राज्यारोहण के समय दिल्ली का सुल्तान सिकंदर लोदी था। सिकंदर लोदी की मृत्यु के बाद में उसका बड़ा बेटा इब्राहिम लोदी तख़्त पर बैठा। राणा सांगा ने पूर्वी राजस्थान के उन क्षेत्रों को जो दिल्ली सल्तनत के अधीन आते थे उन्हें जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। बस इसी कारण से इब्राहिम लोदी क्रोधित हो गया और उसने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। 1517 ई. में हाड़ौती की सीमा पर खातौली का युद्ध हुआ जिसमें इब्राहिम लोदी को हार का सामना करना पड़ा।
धौलपुर (बाड़ी) का युद्ध
- इब्राहिम लोदी ने अपनी पराजय का बदला लेने के लिए मियाँ मक्कन के नेतृत्व में सेना को राणा सांगा के विरुद्ध भेजा।
- इस युद्ध में भी लोदी की शाही सेना को बुरी तरह पराजित होकर भागना पड़ा।
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बाबर और राणा सांगा (Babur & Rana Sanga History)
राणा सांगा के शासन के समय काबुल का शासक बाबर था। बाबर का पूरा नाम मोहम्मद जहीरुद्दीन बाबर था जो तैमूर लंग के वंशज उमरशेख मिर्जा का पुत्र था। बाबर ने 20 अप्रैल, 1526 को पानीपत की प्रथम लड़ाई में इभ्रहीम लोदी को हराकर दिल्ली में मुग़ल शासन की स्थापना की। दिल्ली हथियाने के बाद बाबर ने राणा सांगा पर भी अधिकार जमाना चाहा ओए बयाना दुर्ग अधिगृहित कर लिया।बाबर ने फतेहपुर सीकरी में अपना पहला पड़ाव डाला था।
बयाना का युद्ध
- 16 फरवरी, 1527 को सांगा ने बाबर की सेना को हराकर बयाना दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया।
- बाबर ने अपनी हार का बदला लेने के लिए सांगा पर पुनः आक्रमण करने के लिए कूच की।
- बयाना की विजय के बाद सांगा ने सीकरी जाने का सीधा मार्ग छोड़कर भुसावर होकर सीकरी जाने का फैसला लिया। वह भुसावर में लगभग एक महीना ठहरे।
- लेकिन इससे बाबर को खानवा के मैदान में उपयुक्त स्थान पर पड़ाव डालने का अवसर मिल गया।
खानवा का युद्ध
बाबर और राणा सांगा के मध्य हुए खानवा के युद्ध का विवरण इस प्रकार है –
- 17 मार्च, 1527 को खानवा के मैदान में दोनों सेनाओ के मध्य भीषण युद्ध हुआ।
- खानवा का मैदान वर्तमान भरतपुर जिले की रूपवास तहसील में है।
- राणा सांगा ने खानवा के युद्ध में ‘पाती पेरवन’ की परंपरा को पुनर्जीवित किया और राजस्थान के प्रत्येक सरदार को युद्ध में शामिल होने का निमंत्रण दिया था।
- महाराणा सांगा के साथ मारवाड़ के राव गंगासिंह, मालदेव, आमेर के राजा पृथ्वीराज, वीरमदेव मेडतिया, डूंगरपुर के रावल उदयसिंह,खेतसी देवलिया के राव बाघसिंह, नरबर हाड़ा, चंदेरी के मेदिनिराय, बीकानेर के कुंवर कल्याणमल, झाला अज्जा जैसे कई राजपूत थे।
- युद्ध के दौरान राणा सांगा के सर पर एक तीर लगा और वो मुर्छित हो गए।
- तब झाला अज्जा को सभी राजचिन्हों के साथ महाराणा के हाथी पर सवार किया गया और झाला अज्जा ने युद्ध संचालन में अपने प्राणों की आहूति दे दी।
- मुर्छित महाराणा को राजपूत बसवा गाँव (जयपुर राज्य) ले गए।
खानवा के युद्ध में राणा सांगा की पराजय का कारण
युद्ध में पराजय का मुख्य कारण महाराणा सांगा की प्रथम विजय के बाद तुरंत ही युद्ध न करके बाबर को तैयानी का समय देना था। राजपूतों की तकनीक भी पुरानी थी और वे बाबर की नई व्यूह रचना ‘तुलुगमा पद्धति’ से भी अनभिज्ञ थे। बाबर की सेना के पास तोपें और बंदूकें थी, जिससे राजपूत सेना को सबसे ज्यादा हानि हुई। इस युद्ध के बाद से भारतवर्ष में मुगलों का राज्य स्थायी हो गया।
राणा सांगा की मृत्यु (Rana Sanga Death)
बाबर राजपूतों पर आक्रमण कर उनकी शक्ति को नष्ट करने के विचार से 19 जनवरी, 1528 को चंदेरी पहुंचा। चंदेरी के मेदिनिराय की सहायता के सांगा ने फिर से चंदेरी की और प्रस्थान किया। कालपी से कुछ दूर इरीच गाँव में राजपूती सेना ने डेरा डाला। कहा जाता है कि साथी राजपूत जो इस युद्ध के विरोधी थे उन्होंने सांगा को फिर से युद्ध में प्रविष्ट होते देख उन्हें विष दे दिया। 1528 ई. में राणा सांगा का स्वर्गवास हो गया। वहां से उन्हें मान्दल्गढ़ लाया गया जहाँ उनकी समाधि है।
निष्कर्ष
महाराणा सांगा (Rana Sanga History) वीर और उदार स्वभाव के थे। उनके राज्यकाल में मेवाड़ अपने गौरव और वैभव के सर्वोच्च शिखर पर था। इसलिए उन्हें ‘अंतिम भारतीय हिन्दू सम्राट के रूप में याद किया जाता है।
उम्मीद करते है जानकरी आपको अच्छी लगी होगी और आपको सभी सवालों के जवाब मिल सके होंगे।
FAQs
ANS. राणा रायमल
ANS. लोदी वंश के शासक सिकंदर लोदी का
ANS. चित्तौरगढ़ में 12 अप्रैल 1482 में
ANS. मांडलगढ़ में
ANS. झाला अज्जा राणा सांगा की तरफ से खानवा का युद्ध लड़ने वाले वीर थे
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